कैसे सीखेंगे देशभक्ति.....?

          मजहबी दावं-पेच में ऐसा न हो कि दुनिया श्मशान बन जाए.

कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए विश्व स्तर पर जो प्रयास किए जा रहे हैं वह किसी भी तरह नजरअंदाज करने लायक नहीं है,परंतु दु:ख की बात यह है कि कुछ सामाजिक संगठनों के द्वारा इसके विरुद्ध काम किया जाना मानवद्रोही अथवा देशद्रोह से बिल्कुल कम नहीं है।

      हाल ही में दिल्ली के निजामुद्दीन के एक मस्जिद में पाए गए सैकरों या फिर कह सकते हैं हजारों की संख्या में किसी वर्ग विशेष के भाइयों द्वारा एक जगह होकर धार्मिक बैठक आयोजित करना धर्म के नाम पर अपराध के सिवा और कुछ नहीं है । हमें पता है कि  भारत में लॉकडाउन से कई दिनों पहले ही सभा आयोजित करने  तथा स्कूल, कॉलेज, सिनेमाघरों  इत्यादि के दैनिक क्रियाकलाापों को प्रतिबंधित कर दिया गया था. सरकार के द्वारा लिया गया यह सब निर्णय विश्वव्यापी महामारी कोरोना से बचने केलिए लिया गया था. 

     हमें  दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि कुछ पढ़े-लिखे लोगों के द्वारा बनाए गए  संगठनों द्वारा इसके लॉकडाउन के विरुद्ध काम किया जाना बिल्कुल गैर मुनासिब है. विश्व की कोई भी सरकार इतनी नासमझ नहीं है कि उसे आर्थिक मंदी की चिंता ना हो. एक मजदूर वर्ग का काम यदि रुक गया तो यह कोई कम चिंता का विषय नहीं है. लेकिन यदि कोई उपाय न सूझा तो अंत में यही लगा कि लॉकडाउन के सिवा और कोई विकल्प नहीं है. 
          गौरतलब हो कि शादी विवाह जैसे रस्मों को भी इस अवधि में पड़ने के कारण लोगों व कुटुंबों ने विश्व हित व जनहित में टाल दिया. सरकार की जब घोषणा हो चुकी है कि किसी भी प्रकार का सभा आयोजित नहीं करना है तो इस तरह का सभा आयोजित करना गैरकानूनी ही नहीं अपितु मानव द्रोह का विषय है. यह सब जाहिलता के सिवा और किसी चीज का द्योतक नहीं है. 
                हालाकि भारत के साथ-सथ कई देशों ने अपने धार्मिक कार्यक्रमों को समूह में ना करने का निर्णय लिया. वही उस इस्लामिक समाज के लोगों के द्वारा इस तरह का कृत्य करना धर्म को बेबुनियाद बदनाम करना ही है.  बड़े-बड़े,मंदिरों ,मस्जिदों,गिरजाघर व गुरुद्वारों में प्रवचन के कार्यक्रम तथा पूजा पाठ के कार्यक्रमों को 14 अप्रैल तक स्थगित कर दिया गया है.  इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए लॉक डाउन के सिवा और कोई उपाय हमारी सरकार को न दिखा. हम केवल अपनी ही सरकार की बात नहीं कर रहे हैं विश्व का सबसे बड़ा देश अमेरिका, इटली, फ्रांस,स्पेन आदि को भी लॉक डाउन के के सिद्धांत का अनुसरण करना पड़ा.  मुझे दुख उन मुस्लिम भाइयों से हैं जो सरकार के द्वारा लिए गए निर्णय के बावजूद भी जमात के कार्यक्रम को आयोजित किए एवं बिरादरी के हजारों भाइयों ने उस कार्यक्रम में शिरकत किया. परिणाम यह निकला कि उसमें से कई कोरोना पीड़ित निकल गए. यदि  उन्हें उनका मजहब ही अधिक प्यारा था तो किसी भी धर्म का प्रमुख सूत्र मानवहित का ख्याल अवश्य रखना चाहिए था.
                हालांकि मैं किसी भी धर्म का विरोधी नहीं हूं परन्तु धर्म के नाम पर पाखंडी लोगों से नफ़रत अवश्य करता हूँ.  आज कोई भी धर्म बदनाम है तो जाहिल,लोभी व पाखंडी लोगों के कारन ही. अपितु किसी भी धर्म का रास्ता बिल्कुल साफ़ होता है. हमारे देश के चंद मुस्लिम भाइयों को  इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान से सीख लेनी चाहिए थी कि उसने भी इस विकत घडी में  लॉकडाउन का ही सहारा लिया है. क्यों! क्योंकि, उन्हें इस वैश्विक महामारी से बचना है. यह किसी  अमीर से गरीब तक का शौक नहीं है कि इस प्रलयंकर महामारी से बचने केलिए  भूखे रहे व घरों में दुबके रहे.  लेकिन उन्हें पता है कि इस महामारी से बचने केलिए कुछ दिनों तक सामाजिक दूरियाँ बना लेंगे तो शायद दुनिया शमशान होने से बच जाएगा.
            हमें तो अपने गांव, अमरख के मुस्लिम भाइयों से बहुत खुशी मिलती है जब मैं मदरसे व मस्जिद के मौलवी साहबों  के द्वारा ऐलान सुना कि जुम्मे का नमाज मस्जिद में ना पढ़ा जाएगा और उन्होंने बार-बार मुस्लिम भाइयों से अपील किया कि हम सबका हित इसी में है कि हम लोग एक जगह एकत्रित न हो तथा  हम लोग मस्जिद में एक साथ ना आए. पूरी तरह कोशिश करें कि नमाज घर पर ही पढ़े. इसमें कोई दिक्कत नहीं है. भलाई इसी में है. इसके लिए मैं अपने गांव पड़ोस व समाज के मुस्लिम भाइयों को धन्यवाद देता हूं. क्योंकि उन्होंने धर्म को सही रूप से परखा समझा और लोगों के बीच इसे परिभाषित किया. 

लॉकडाउन  के बाद जिस तरह से कोरोना मरीजों की संख्या में ह्रास  होना शुरू हुआ था तो लोगों में एक आशा की किरण जगी थी. लेकिन जब फिर कुछ दिनों के बाद मरीजों की संख्या में अत्यधिक इजाफ़ा शुरू हुआ तो लोगों में एक गजब प्रकार का भय पैदा होने लगा. उनको यह दिखने लगा कि शायद लॉकडाउन से भी परिस्थिति को काबू में नहीं लाया जा सकता है. लेकिन दिल्ली पुलिस की सजगता से देशद्रोह का बहुत बड़ा पर्दाफाश हुआ.                दरअसल निजामुद्दीन में मुस्लिम भाइयों का एक कार्यक्रम था जिसमें हजारों की संख्या में कई राज्यों एवं देशों से आए लोग शिरकत कर रहे थे. जब उन लोगों का पड़ताल किया गया तो पाया गया इसमें से कई कोरोना पीड़ित भी हैं. इतना ही नहीं रांची,लखनऊ,पटना इत्यादि के मदरसों में भी कुछ विदेशी पाए गए. इस प्रकार उन मश्जिद व मदरसों के संचालकों एवं इमामों ने अपने को देशद्रोही होने का प्रमाण दे दिया. आखिर सोच इतना संकीर्ण क्यों है उन लोगों का? वे चाहते क्या हैं?  

                                                            मेरा सलाह 
                                 १.  अभी जो देश का जो विकट हाल है उसमें तो मेरा यही सलाह है कि देश के सभी मस्जिदों  एवं मदरसों में छापामारी हो. इसे धार्मिक भावना पर कुठाराघात न समझा जाए.  साथ ही यदि किसी मंदिर,मश्जिद,गुरुद्वारा, इत्यादि पर  भी शंका हो तो उसमें भी  छापेमारी की जाए.
                                  २.  यदि किसी वर्ग विशेष, जाति विशेष या फिर धर्म विशेष पर भी शंका हो तो उसकी भी पड़ताल की जाए क्योंकि इन छुपे दुश्मनों के द्वारा हीरो खेल रहा है.
                                 ३. ग्रामीण क्षेत्रों के एक-एक मश्जिद,मदरसों, व धर्मशालाओं पर पैनी नजर रखी जाए एवं छापेमारी की जाए. क्योंकि कम पढ़े-लिखे एवं जाहिल लोग ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में ही है.  
                                  ४. अभी जो समाचार चैनलों के द्वारा जो कुछ भी सुनने को मिल रहा है,उससे यही जाहिर होता है कि बहुत सारे जमाती प्रशासन को चकमा देकर भाग चुके हैं. इसकी शिनाख्त करने का मात्र एक ही रास्ता है कि प्रत्येक थाना प्रशासन इन क्षेत्रों में सदर पूर्वक जाँच-परताल करे.
                                  ५. बहुत सारे हिंदू बिरादरी के लोग भी प्रशासन को सूचना दी बगैर बाहर से चले आएं हैं,उनकी भी शिनाख्त की जाए और उन्हें शक के घेड़े में रखें.
                                 लॉक डाउन के चलते तो कहीं आना-जाना मेरा बिल्कुल बंद है,परन्तु जब दरवाजे पर बैठता हूँ तो कभी-कभी कुछ नए-नए चहरे नज़र आते हैं. हालाँकि उनकी वजह से भी मन में शंकाएँ उत्पन्न होती है. इस वैश्विक महामारी से निपटने केलिए मैं केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों से यही निवेदन है कि मेरी सलाह पर विचार कर उचित निर्णय लें. यह विकत समय न ही वोट बनाने का है और न ही बिगारने का. अभी का वक्त राजनीति से पड़े विश्व कल्याण है. हलाकि उत्तरप्रदेश सरकार के जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन ने इस तरह के कदम उठाएं है. मैं चाहता हूँ कि बिहार की सरकार भी उत्तरप्रदेश सरकार की तरह कदम उठाए.
                        मेरा विचार और विश्लेषण किसी धर्म के विरुद्ध नहीं है. मेरा विचार मानवजाति के समर्थन में है,चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाले हों. हाँ कोई भी दहर्म बदनाम होता है चंद पाखंडियों के द्वारा ही,जिनके अंदर दुष्प्रचार फ़ैलाने की क्षमता हो. दुनिया बचाने केलिए एकबार हमें आप सबसे निवेदन है कि सरकार की नीतियों का समर्थन करें और छुपे दुश्मनों को निकालें. वरना सरकार का सारा प्रयास नाकाम हो जेगागा और पूरा मुल्क ऐसा श्मशान हो जाएगा,जिसे कोई देखने वाला भी न हो.

Comments

  1. These all things indicate their unlitracy and low mantility

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