गम.......... मेरी कविता
गम के कतारों में गम को भूल जाते हैं
तेल के घटते ही दीपक बुझ जाते हैं ।
पता नहीं कल क्या होगा?
गम ने इशारा कर डाला।
सोचते हैं जिसे,
वह कहीं पर टूट जाते हैं।
गम के कतारों में गम भूल जाते हैं
तेल के घटते हैं दीपक बुझ जाते हैं।
गम का है राज यहां पर
खुशियों का शान यहां पर
शान वालों पे कभी गम दिल तोड़ जाते हैं।
गम के कतारों में गम को भूल जाते हैं
तेल के घटते हैं दीपक भूल ही जाते हैं।
हे प्रभु गम बनाए तू
आना भी उसे जरूरी था।
पर एक को मुबारक ना करना
दिल काँप जाते हैं।
गम के कतारों में गम को भूल जाते हैं।
तेल के घटते ही दीपक बुझ जाते हैं।
नवेन्दु नवीन
(यह कविता 4 जनवरी 2005 को लिखी गई है।)
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