जीवन अजब गड़ी है जिसमें मस्ती भरी पड़ी है...कविता

जीवन अजब गड़ी है जिसमें मस्ती भरी पड़ी है;
 फिर भी दर्द में रोया न मैं,
 मां की ममता मुझमें गड़ी है
 जीवन अजब गड़ी है जिसमें 
मस्ती भरी भरी पड़ी है
सहता हूं मैं रोज ताना 
न मिलता कोई बहाना,
छेदती मुझे आती हवाएं 
जिनकी बातें बड़ी-बड़ी है।
 जीवन अजब गड़ी है
 जिसमें मस्ती भरी पड़ी है।
रो पाता कभी नहीं मैं 
 लोग क्रोधित न होवे मुझसे
 हंसने में डर लगता है 
चिढ़ने वालों की बड़ी कड़ी है 
जीवन अजब गड़ी है 
जिसमें मस्ती भरी पड़ी है।
प्रभु देखते हैं क्या मुझको 
संतापित करते रहते हैं।
आंसू कैसे चुआ सकता हूं?
परीक्षा की यही घड़ी है ।
जीवन अजब गरी है
 जिसमें मस्ती भरी पड़ी है।
उबता है मन कभी जब
 सोचता नहीं कभी पर 
देखता हूं हंसने वालों की 
जिनकी प्रशंसा भूरी भूरी है।
जीवन अजब गड़ी है
 जिसमें मस्ती भरी पड़ी है
धो न सका इन खटखटे हाथों को 
आंसू की कमी बनी है।
 पीने की बातें क्यों करूं?
पानी पे मार पड़ी है।
जीवन अजब गड़ी है।
जिसमें मस्ती भरी पड़ी
खुशी से दिल थामें रहता हूं।
पत्थर की पूजा करता हूँ।
 हंसना रोना दोनों है जब
हंसने की यही घड़ी है।
 जीवन अजब गरी है जिसमें मस्ती भरी पड़ी है
                 नवेन्दु नवीन
        (यह कविता 22-11-2003 को लिखी गई है।)

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