आंसुओं की वर्षा में गम.......
आंसुओं की वर्षा में,
गम तो खाना ही होगा।
प्रेम की छाया में कहीं,
आह तो भरना ही होगा।
इस सुहाने सपने में लगे जब,
प्रीति का ठोकर।
धुन भरी रागों में,
ताल तो भरना ही होगा।
आंसुओं की वर्षा में,
गम तो खाना ही होगा।
दुख है इस बात की,
जब भाई भाई को भूलता।
कृष्ण को फिर याद कर,
बलराम संग खेलना ही होगा।
आंसुओं की वर्षा में,
गम तो खाना ही होगा।
इंतजार है उस प्रलय का,
जिसे एक दिन आना ही होगा।
मचा के हाहाकार जग में,
सब को पताल जाना ही होगा।
आंसुओं की वर्षा में,
गम तो खाना ही होगा।
ढूंढो बंदे उसे जो,
कराता दुख का मंचन।
शंकर को साक्षी मानकर,
दानी व कठोर बनना ही होगा।
आंसुओं की वर्षा में,
गम तो खाना ही होगा।
प्रेम की छाया में कहीं,
आह तो भरना ही होगा।
नवेन्दु नवीन
(यह कविता 06-07-2004 को लिखी गई है।)
आह तो भरना ही होगा।
इस सुहाने सपने में लगे जब,
प्रीति का ठोकर।
धुन भरी रागों में,
ताल तो भरना ही होगा।
आंसुओं की वर्षा में,
गम तो खाना ही होगा।
दुख है इस बात की,
जब भाई भाई को भूलता।
कृष्ण को फिर याद कर,
बलराम संग खेलना ही होगा।
आंसुओं की वर्षा में,
गम तो खाना ही होगा।
इंतजार है उस प्रलय का,
जिसे एक दिन आना ही होगा।
मचा के हाहाकार जग में,
सब को पताल जाना ही होगा।
आंसुओं की वर्षा में,
गम तो खाना ही होगा।
ढूंढो बंदे उसे जो,
कराता दुख का मंचन।
शंकर को साक्षी मानकर,
दानी व कठोर बनना ही होगा।
आंसुओं की वर्षा में,
गम तो खाना ही होगा।
प्रेम की छाया में कहीं,
आह तो भरना ही होगा।
नवेन्दु नवीन
(यह कविता 06-07-2004 को लिखी गई है।)
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