हम पथिक अंतिम पड़ाव के..........................................सुखदेव बाबू की कविता.

हम पथिक अंतिम पराव के

सुखदेव प्रसाद.
हम पथिक अंतिम पराव के 
जिंदगी के उतार-चढ़ाव के
है  वृद्धावस्था संध्या बेला 
और समापन जीवन मेला 
गै बीत दिन राग रंग के 
हम पथिक अंतिम पराव के.
 वानप्रस्थ कि आई बेला
 रही न मन में शेष लालसा 
हम पंछी प्यासे प्रेमभाव के 
अंग शिथिल अब आई थकावट 
याददाश्त ना रही यथावत 
चेहरे पर अब जमी झुर्रियां 
बालों ने की खुली बगावत
 रहा ना अब और जोश रक्त में 
कट रहे अब दिन ढलाव के 
करी वक्त ने बड़ी शरारत 
शिर से सारे बाल नदारद 
क्षीण बाहुबल छड़ी सहारा 
व्यर्थ दंत बिन भोज पदारथ 
 साजिश ए बेरहम वक्त की 
हवा हो गये हर्ष उल्लास के 
हीन मधुमेह ने सेंध लगाई 
सांस फूले और बीपी हाई 
दृष्टि दोष आंखों पर चश्मा 
कानों से कम पड़े सुनाई 
घुटनों ने भी घुटने टेके
 काटे कटे ना दिन तनाव के
 हम पति का अंतिम कराओके
                                                                           सुखदेव प्रसाद,अमरख,मुजफ्फरपुर.

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