जायजा लेते हैं महेश

जायजा लेते हैं महेश


किसने किया यह हाल 
जिससे जिंदगी हुई बेहाल
 कैसे रहते हैं वे 
जिन से जीता सारा परिवार
 शायद नहीं जानते हैं 
क्या है उनके काम
 कोई समझते उन्हें गाड़ी का पहिया 
चलते रहना उनका काम 
क्या करते हैं वे 
जो सचमुच हंसते रहते हैं
 कहां हैं उनका धार 
जहां सचमुच गाते रहते हैं 
कहां है उनकी ठइयाँ 
जहां टिकती है उनकी पैयां
 कैसा है उनका राग, 
जिससे मिलता बादक का ताल
 क्या पहुंचा है उनकी जो,
कि जाए गिर्वान के पास
 खुद ने किया यह हाल,
जिस से बदल गई है चाल 
कर्म सम्मेलन होता है जब 
महेश बांटते हैं प्रसाद 
समय आने पर पूछते हैं 
बताओ कैसे बीते तेरे काल,
 कैसे हुआ यह बुरा हाल
 कैसे बुने यह भले जाल
 जायजा लेते हैं महेश
 सबसे सुनते हैं संदेश 
                                                     नवेन्दु नवीन.               यह कविता 17 अगस्त 2003 को लिखी गई

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