गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव में शिक्षित वर्गों में बेरोजगारी की समस्या

जनसंख्या की दृष्टिकोण से भारत का स्थान विश्व में दूसरा है। यहां प्रत्येक साल साक्षरों की संख्या में भी वृद्धि होते जा रही है. परंतु उनके अंदर बेरोजगारी की समस्या इतनी व्याप्त हो चुकी है कि वे अपना जीवन यापन सही ढंग से नहीं कर पा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण उनमेंं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अर्थ छात्रों में सर्वांगीण विकास से है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी इसका पुरजोर समर्थन किया था. हालाकि ज्यादातर महान शिक्षाविदों ने ऐसी शिक्षा पद्धति पर ही बल दिया था। परंतु समझने का नजरिया अलग होने के कारण शिक्षण समााज के लोग उसे व्यवहारिक रूप में उतारने का प्रयास नहीं किए। यही वजह है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था डिग्री लेने तक ही सीमित रह गया,पर शिक्षित युवाओं में सरकारी नौकरियों पर  निर्भरता होने के  कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में ढेर सारी कमियां नजर आने लगी।
 गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की एक विशेषता यह होनी चाहिए कि वह छात्रों के ऊपर बोझ न बने बल्कि छात्र उसे रूचि के अनुसार ग्रहण करें। ऐसा नहीं हो पाता है,इसीलिए छात्र पाठ्य-पुस्तकों के दबाव में आ जाते हैं और अपनी प्रतिभा को खो बैठते हैं।
    गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का एक और उद्देश्य यह होना चाहिए कि शिक्षक केवल सिद्धांतवादी न हो बल्कि वह व्यवहारिक व प्रायोगिक दोनों हो। जब-तक किसी भी शिक्षा या ज्ञान को व्यवहार के रूप में नहीं उतारेंगे तब तक शिक्षा का उचित महत्व समझ में नहीं आएगा।अतः गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का एक उद्देश शिक्षा को व्यवहारिक होना भी है।
व्यावसायिक शिक्षा पर बल:
व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिए बगैर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कल्पना नहीं कर सकते हैं। क्योंकि सैद्धांतिक रूप से शिक्षा ग्रहण कर लेने के बावजूद बहुत सारे लोग गरीबी और भुखमरी की का दंश झेल रहे हैं। लेकिन यदि उनके अंदर व्यावसायिक एवं व्यवहारिक शिक्षा होती है तो उन्हें ऐसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है और वह अपना जीवन खुशी पूर्वक बिताते हैं।
      गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ही किसी व्यक्ति को देश का सभ्य नागरिक बनाने का काम कर सकता है। जिन लोगों के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा होती है उनके अंदर व्यवहारिक शिक्षा ,आचरण संबंधी शिक्षा एवं नैतिकता का ज्ञान भी कूट कूट कर भरा होता है। वैसे लोग समाज को खंडित होने से बचाते हैं तथा राष्ट्र की एकता और अखंडता का सदैव ख्याल रखते हैं। मेरा मानना है कि जिन लोगों के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा होती हैं वे समाज में न ही जाति- पॉर्न न ही लैंगिक भेदभाव करते हैं । भारतीय समाज में अक्सर देखने को मिलता है कि बेटियों को हमेशा लड़कों से कम आंका जाता है। यह हमारी शिक्षा व्यवस्था का ही दोष है। जो लोग वास्तविक शिक्षित होते हैं वह बेटे और बेटियों में कभी अंतर नहीं समझते हैं और देश व समाज के विकास के लिए उनकी भी महती भूमिका को स्वीकारते हैं।
    वर्ल्ड एंप्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक के अनुसार भारत में बेरोजगारों की संख्या वर्ष 2018 में 3.5 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है। यह सभी हमारी शिक्षा व्यवस्था का ही दोष है। यदि उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिया जाता तो उनके अंदर न ही नैतिक शिक्षा की कमी नज़र आती और न ही  व्यावसायिक शिक्षा और  व्यवहारिक शिक्षा की ही कमी होती। इस प्रकार भारत के ये तमाम शिक्षित लोग राष्ट्र को समृद्धि की ओर ले जाने का कार्य जरूर करते। गौरतलब हो कि विश्व के जितने भी विकसित देश हैं वहां के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाती है। जिस देश में इस तरह की शिक्षा व्यवस्था नहीं है वह देश विकसित नहीं है। अपितु वह विकासशील अथवा पिछड़े देश की श्रेणी में आता है।

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