भक्तों ने बदनाम किया धर्म को

धर्म का मतलब होता है धारण करना।अर्थात् अच्छाई को धारण करना न कि अंधविश्वास में आकर अपने फायदे के लिए अतार्किक कृत्य करना। इन चीजों से प्रायः धर्म की बदनामी होती है और जो लोग ऐसा करते हैं वे सबके लिए उत्तरदाई भगवान को ही मानते हैं जैसा लगता है कि उनसे भगवान की बातचीत होती है। इस प्रकार अंधविश्वास में आकर वर्तमान समय में लोग धर्म के मूल सिद्धांत को नजरअंदाज कर चुके हैं।  इसी का परिणाम है कि हिंदू धर्म या कमोबेश प्रायः सभी धर्म को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।  कहा जाता है कि जो सबसे टूटा हुआ इंसान होता है वही प्रभु की शरण लेता है।  ऐसा भी भी देखा गया है कि जिन लोगों में संघर्ष करने की शक्ति नहीं होती है वही सब कुछ भगवान के ऊपर छोड़ देते हैं।इसका परिणाम होता है कि वे एक तो निकम्मे बने रह जाते हैं; दूसरा ईश्वर को भी बदनाम करते हैं।
      गीता में लिखा गया है कि कर्म ही पूजा है। अर्थात ईश्वर की सच्ची भक्ति करनी हो तो पहले कर्म करें। कर्म का भी मापदंड होता है। वैसा किसी भी प्रकार का कर्म नहीं होना चाहिए जिससे निर्दोष की भावनाएं आहत हो।अर्थात कर्म सदा अपने व दूसरों की भलाई के लिए होनी चाहिए। यदि आपके द्वारा किए गए कर्मों से दूसरों का भला नहीं भी होता हो तो बुरा भी नहीं होना चाहिए। उस स्थिति में जिसमें खुद का ही भला हो और दूसरों का बुरा न हो तो वह कर्म सार्थक होता है।
     भूखे रहकर भगवान की उपासना करना:
            अंधविश्वास में आकर बहुत सारे लोग भूखे रहकर ईश्वर की भक्ति करते हैं । उनका मानना है कि इससे ईश्वर खुश होते हैं । परंतु यह बातें यदि उनसे पूछा जाए कि क्या ऐसा ईश्वर ने आपको कहा है तो वे जवाब देने में असफल हो जाते हैं । क्योंकि यह बिल्कुल अतार्किक बात है अतः इसका जवाब ढूंढ पाना बिल्कुल संभव नहीं है। हालाकि धर्म ग्रंथों में इस तरह की बातें नहीं कही गई है । परंतु इस तरह की परंपरा कैसे विकसित हो गया यह बिल्कुल समझ से परे है।
      उपासना करने वालों का यदि मनोवैज्ञानिक रूप से विश्लेषण किया जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि भक्ति करने वाले लोग ईश्वर की भक्ति दिल से नहीं बल्कि निजी स्वार्थ बस करते हैं। नियमतः किसी का भी ध्यान किसी के प्रति केंद्रित तभी रहेगा जब उसके शरीर में ताकत हो ।ऐसा तभी संभव है जब वह व्यक्ति भूखा नारहेगा। अतः जिनकी भक्ति जो अंधभक्त करते हैं उनको ईश्वर ने कभी आकर यह नहीं कहा कि तुम भूखे रहकर मेरी उपासना करो या तुम सारे कामकाज को छोड़कर ही मेरे पीछे पड़े रहो।
     उपवास का मजाक उड़ाना:
धर्म ग्रंथों में उपवास का बहुत बड़ा महत्व है । कई दृष्टिकोण से इसके महत्व को आंका जाता है। पहला स्वास्थ्य की दृष्टिकोण से और दूसरा गरीबों की भलाई की दृष्टिकोण से। परंतु वर्तमान समय में ऐसा बिलकुल नहीं देखा जाता है। उपवास के मूल में सबसे बड़ा कारण यह है कि एक वक्त भोजन नहीं करके शरीर की पाचन क्रिया को संतुलित करना और दूसरा उस वक्त के बचे अन्न को  गरीबों के लिए जमा करना तथा उसकी मात्रा अधिक हो जाने पर भूखे लोगों में वितरित करना। अतः धर्म मानवता का बहुत बड़ा संदेश देता है। परंतु मानने वाले लोग उस दृष्टिकोण से नहीं सोचते हैं और उस अनाज को अमीर ब्राह्मणों के बीच वितरित कर देते हैं । ब्राह्मण लोग भी उन्हें ऐसा करने की शिक्षा नहीं देते हैं।
    ब्राह्मणों की सर्वोच्चता
हमारे समाज की खासकर हिंदू धर्म की सबसे बड़ी बुराई है कि ब्राह्मणों को धार्मिक दृष्टिकोण से सर्वोच्च माना जाता है। दुख की बात यह है कि कर्म से ब्राह्मणों की मान्यता हमारे समाज में नहीं मिली है। जो जन्म से ब्राह्मण हैं वास्तविक रूप से उन्हीं को ब्राह्मण माना जा रहा है। अतः ब्राह्मण सर्वत्र पूज्यते वाली कहावत उन्हीं के लिए चरितार्थ होती है जो जन्म से ब्राह्मण हो चाहे उनके अंदर वेद पुराण व धर्मों का वास्तविक ज्ञान हो अथवा नहीं । चाहे उनके अंदर अनेकों बुराइयां क्यों न हो। हम तो अपने समाज में वैसे भी ब्राह्मणों को देखते हैं जो मदिरापान का सेवन करते हैं और पूजा पाठ कराते हैं ।क्योंकि वह जन्म से ब्राह्मण हैं इसीलिएअंधविश्वास में जी रहे लोग उनकी भी पूजा करते हैं । यहां भी हमारा धर्म बदनाम हो रहा है
    जाती पाती के बीच भेदभाव



           
आलेख को दूसरे दिन विस्तारित किया जाएगा।

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