हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतिक रहा बलहिया-अमरख का मुहर्रम का त्योहार

करतब दिखाते मोहम्मद समीम एवं उमाका टीम.

हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक रहा बलहिया-अमरख गाँव का तजिया:


गाँव का इतिहास रहा है कि अंग्रेज के समय से ही यहाँ मुहर्रम का त्योहार हिंदुओं और मुसलमानों के लिए समान आस्था का पर्व रहा है।इसे मनाने में हिंदुओं की भागीदारी भी लगभग समान रूप से रही है।
 अमरख गाँव का इतिहास बतलाता है कि गाँव के स्व. सुदामा देवी एवं स्व.रामसागर महतो प्रत्येक साल इस त्योहार के अवसर पर अपने दरवाजे पर नियमित रूप से तजिया बनवाते थे। ऐसा माना ज आता था कि गाँव के वरिष्ठ समाजसेवी रामसागर बाबू को कोई पुत्र नहीं हो रही थी  तो उन्होंने अपने मित्र बेचू बाबू के सलाह पर हजरत इमाम से मन्नत माँगा कि यदि उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी तो हम प्रत्येक साल धूम-धाम से इस पर्व का आयोजन करेंगे. उनकी मन्नत पूरी हुई और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई,जो आज भी सत्यनारायण महतो के नाम से हैं. इन्हें लोग मांजन साहब भी कहते हैं.तब से प्रत्येक साल रामसागर बाबू  अपने दरवाजे पर तजिया बैठवाने  लगे. पर उनकी जिंदगी के बाद यह परंपरा उनके यहाँ से समाप्त हो गई,परन्तु गाँव के ही सक्रिय महिला कार्यकर्ता स्व.सुदामा देवी जी खानदान आज भी इस परंपरा को कायम किए हुई है.माना जाता है उन्होंने भी कोई मन्नत रखा था,जिसकी मुराद पूरी होने के बाद यह त्यौहार उनके यहाँ भी धूम-धाम से आयोजित क्या जाता रहा है, जिसमें अन्य हिंदू और मुस्लिम भाई भी सहयोग कर रहे हैं.
   

करतब दिखाते मोहम्मद समीम एवं उनका टीम. इस टीम में ज्यादातर  बलहियाँ गाँव से हैं.
 इस बार का भी मुहर्रम का त्योहार बहुत बड़ा संदेश दे रहा था।ऐसा लग नहीं रहा था कि यह त्योहार केवल मुस्लिमों का है।
     आयोजन को सफल एवं शांतिपूर्वक मनाने में मोहम्मद नईम, मोहम्मद ताहीर, मोहम्मद ज़ाहिर, मोहम्मद शमीम तथा मोहम्मद नसीम के अलावे,लक्ष्मी राम, रामजी प्रसाद, इत्यादि कई हिन्दू भाईयों की सहभागिता मौजूद रही।अमरख के मराछू चौक पर कार्यक्रम में उपस्थित आस्था फाउंडेशन (ए. एफ़) के संस्थापक सचिव नवेन्दु नवीन ने इस पर्व की शुभकामना हिन्दू और मुस्लिम भाइयों को दी एवं लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की।
मुस्लिम भाइयों के साथ मैं.

मुस्लिम भाइयों के साथ मैं, मोहम्मद  नईम, मोहम्मद ताहीर, एवं अन्य मुस्लिम भाई.

मुस्लिम भाइयों के साथ मैं, मोहम्मद  नईम, मोहम्मद ताहीर, एवं अन्य मुस्लिम भाई.

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