हिंदी दिवस मनाने मात्र से हिंदी की समृद्धि नहीं होगी....................................

          हिंदी भाषा का प्रयोग करने वाले को मिले हर क्षेत्र में राहत.

हिंदी दिवस का इतिहास बहुत पुराना है. वर्ष 1918 में राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने इसे जनमानस की भाषा कहा था और इसे राष्ट्र भाषा घोषित करने की बात कही थी. परन्तु इसपर अमल नहीं किया गया.आजादी के बाद काका कालेलकर,मैथली शरण गुप्त,हजारी प्रसाद द्वेदी,सेठ गोबिंद दास और व्यवहार राजेन्द्र दास  इत्यादि लोगों ने इसे राष्ट्र भाषा की उपाधि दिलाने केलिए अपनी पूरी ताकत लगा दी और अपना समर्थन पाने केलिए इन्होने अहिन्दी भाषी क्षेत्रों की भी यात्राएं की पर सारा का सारा विफल रह गया. इन लोगों के अथक प्रयास से हिंदी राष्ट्र भाषा का दर्जा तो प्राप्त नहीं कर सका परन्तु राजा भाषा का दर्जा प्राप्त किया है  और इसे 14 सितम्बर 1949 को लागू भी कर दिया गया.राजभाषा का मतलब होता है काम काज की भाषा.
  हिंदी भाषा के प्रति हिंदीभाषियों की हीन मानसिकता:    
हिंदी भाषा के पिछड़ेपन  में हिंदी भाषी लोगों की हीन मानसिकता सबसे ज्यादा प्रभावकारी है. प्रत्येक अभिभावक की चाहत होती है कि उनका बच्चा अंग्रेजी माध्यम वाले विद्यालयों में पढ़े साथ ही उसके जीवन शैली में भी अधिक से अधिक अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल  हो. ऐसी स्थिति में हिंदी का पकड़ थोड़ा कमजोर पड़ेगा ही.
लोगों के अंदर यह भी धारणाएँ बैठी हुई है कि बिना अंगरेजी  के पढ़-लिखकर बेकार है.
     इनके सोच में कहीं न कहीं सच्चाई भी है.क्योंकि शासन-सत्ता की और से कभी ऐसा प्रयास नहीं किया गया ,जिससे हिंदी भाषी छात्रों को कुछ राहत मिले.
   सरकारी स्तर पर पहल कमजोर होना:
हिंदी दिवस राजनीतिक गतिविधि का एक अंग रह गया है. इस  अवसर पर नेताओं के भाषणों एवं घोषणाओं के अलावा कुछ रह नहीं गया है. इन सभी चीजों का कोई असर हिंदी के विकास पर नहीं दिख रहा  है. कुछ साल से सरकारी बैंकों में इस दिशा में सार्थक कदम उठाया जा रहा है.साथ ही सभी बैंकों के कर्मचारियों को हिंदी में लिखने व बोलने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है,लेकिन दुःख की बात यह है कि ऐसा पहल सभी विभागीय स्तर पर नहीं हो रहा है.
 हिंदी को बढाने में फिल्म जगत का योगदान:
हिंदी की समृद्धि में बॉलीवुड के फिल्म उद्योग का विशेष योगदान रहा  है.उसकी रोमांटिक फिल्मों को देखकर सात समंदर पार के लोगों का रुझान भी हिंदी के प्रति बढ़ा है. एक समय ऐसा था जब जब चंद्रकांता जैसे उपन्यास को पढने के चलते कईएक विदेशियों ने हिंदी का बृहद अध्यन किया था.
     हिंदी के विकास में कॉर्पोरेट जगत का योगदान:
भले ही हिंदी की ताकत को हिंदी भाषी क्षेत्र के लोग नहीं समझ पाए हों, परन्तु कॉरपोरेट जगत की देशी व विदेशी कंपनियों ने इसके योगदान को जरूर समझा है. फिलहाल गूगल विश्व की सबसे बड़ी सर्च इंजन कंपनी है,जिसका सम्बन्ध अमेरिका से है. उसने हिंदी की ताकत को समझा है और अपने सॉफ्टवेर को हिंदीभाषियों केलिए भी सुलभ बनाने का प्रयास किया है. गूगल के माध्यम से ही मुझे यह जानकारी मिली है कि विश्व में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द नमस्ते  है जो हिंदी भाषा का शब्द है. इस भाषा के महत्व को एक अन्य  विदेशी कंपनी फेसबुक ने भी समझा है. उसके वेबसाईट भी हिंदीभाषियों केलिए उपलब्ध है. इसके अलावे ऑनलाइन मार्केटिंग कंपनी जैसे फ्लिप्कार्ट, अमाजोन इत्यादि भी इस क्षेत्र में पहल कर रही है.
   राजभाषा आयोग द्वारा निर्धारित नए शब्दों पर विचार:
राजभाषा विभाग ने विभिन्न प्रकार के विज्ञान एवं तकनीकी से सम्बंधित शब्दों का निर्माण इस तरह से किया है कि वह हिंदीभाषियों केलिए भी काफी क्लिष्ट सा प्रतीत होता है.अतः उन्हें ऐसे शब्दों की अनुमति देनी चाहिए जो सरल हो और प्रचलन में हो.

हिंदी को समृद्ध बनाने केलिए मेरा सुझाव:
यदि हिंदी को समृद्ध करना है तो बिल्कुल राजनीति से हटकर बात करना होगा. भारत के प्रधानमंत्री ऐसे भी ढेर सारे प्रयोग कर चुके  हैं,जिसका परिणाम लोगों के सामने है. यदि वे दिल से चाहते हैं कि हिंदी भाषा का विकास हो तो उनको मेरे कुछ सुझाव पर विचार करना होगा:-
(१) प्रतियोगिता परीक्षा या किसी भी प्रकार के परीक्षा में हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों को कुछ अतिरिक्त अंक देने का प्रावधान करें.
(२) इनकमटैक्स रिटर्न फ़ाइल के फॉर्म यदि हिंदी में भरा गया हो तो उन्हें प्रोत्साहित करें और कुछ राहत दें.
(३) अहिन्दीभाषी क्षेत्र के केन्द्रीय कर्मचारियों केलिए यह अनिवार्य बना दिया जाए कि उन्हें अपने शुरूआती सेवा काल से दो साल की अवधि में कम से कम हिंदी भाषा में लिखने,पढने तथा बोलने आ जाना चाहिए.इसकी पुष्टि केलिए  सेवा काल के दौरान ही अहर्ता परीक्षा में सफल होकर बतलाना होगा,नहीं तो उन्हें सेवामुक्त कर दिया जाएगा.
(४) जैसे सरकार पेटिएम,गूगल पे,भीमऐप,तेज इत्यादि को इस्तेमाल करने वाले को प्रोत्साहित कर रही है वैसे ही  बैंकिंग लेनदेन में हिंदी भाषा का प्रयोग करने वाले कर्मचारियों एवं ग्राहकों को भी सरकार प्रोत्साहित करे.
        मेरा विश्वास है कि इस तरह का प्रयास सरकार यदि अपने स्तर से करे तो हिंदी को समृद्ध होने से कोई रोक नहीं सकता.











                                                                               

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