महत्वहीन अमूल्य प्रकृति सम्पदा.

बाबासीर की बिमारी केलिए अचूक.

मेरे गाँव के ही एक महानुभाव शिक्षाविद,विन्देश्वर प्रसाद विमल जी ने मेरे दरवाजे पर बिखरे प्राकृतिक वनस्पतियों के औषधीए गुणों के विषय में हमलोगों से चर्चा  की ।ऊपर में जो प्राकृतिक वनस्पति का चित्र दिया गया है,उसका नाम मैं आज भी नहीं जान रहा हूँ परन्तु  मेरे पड़ोसी ने इसे अपनी बीमारी पर आजमाकर देखा,और मात्र दो खुराक में ही उसे राहत मिल गयी.
कहने का यह मतलब है कि हामारे ग्रामीण समाज में अमूल्य प्राकृतिक संपदाओं की कोई कमी नहीं है,जिसे न कोई देखने वाला है,न समझने वाला है और न ही कोई समझाने वाला है.लेकिन इतना विश्वास है कि सरकार यदि इस दिशा में काम करे और वैज्ञानिकों की टीम को ग्रामीण क्षेत्रों में शोध केलिए लगा दे तो इन संसाधनों का निश्चित रूप से उपयोग हो सकता है. इससे देश की अर्थव्यवस्था ही नहीं सुदृढ़ होगी,बल्कि किसानों के जीवन स्तर में सुधार आने के साथ-साथ अंग्रेजी दवाइयों पर से निर्भरता भी लोगों की समाप्त हो जाएगी. परन्तु दुःख कि बात यह है कि हमारे देश की सरकार ऐसा नहीं कर सकती,क्योंकि उसे फायदा है, जाती-पाती तथा धर्म एवं सम्प्रदाय के नाम पर लोगों में फूट डालने से न की संसाधनों के उपयोग से देश को विकसित बनाने एवं जनजीवन को ख़ुशहाल रखने में।



     

Comments

Popular Posts