भोजन की बर्बादी भी देश के पिछड़ेपन का एक बहुत बड़ा कारण

 मैं अपने कई आलेखों के माध्यम से यह साबित करने की कोशिश किया हूँ कि हमारा देश संसाधनों के दुरुपयोग के कारण ही बर्बाद है. मैं अपने एक आलेख के माध्यम से यह भी स्पष्ट करने की कोशिश किया था कि प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग के कारण देश बहुत ज्यादा पीछे हो चूका है.  ऐतिहासिक ग्रंथों में यह स्पष्ट रूप से वर्णित है कि भारत कभी सोने की चिड़िया हुआ करता था.  इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि भारत में संसाधनों की पूजा की जाती थी तथा उसके महत्व को समझा जाता था. यहां तक कि प्राकृतिक वनस्पतियों की पूजा करने के पीछे जन-जीवन के बीच उसके अमूल्य योगदान को छुपा होना था.  उस समय के तत्कालीन ऋषि- मुनि प्राकृतिक वनस्पतियों के इस्तेमाल से ही असाध्य से असाध्य रोगों का इलाज करने में सफलता हासिल कर लेते थे; परंतु आज देश की अधिकांश आबादी इस चीज को समझने मैं असफल है. यह केवल आयुर्वेद विज्ञान व चिकित्सा विज्ञान के पन्नों में ही सिमट कर रह गया है. आम जनजीवन में इसके महत्व की चर्चा पर जरा सा भी कदम नहीं उठाया जा रहा है.
      ठीक इसी तरह भारतीय संस्कृति में अन्न को देवता समझा जाता था, परंतु अब यह सिद्धांत मात्र रह गया है.  यदि इस तरह की बात होती तो आज लोग अन्न की बर्बादी नहीं करते; बल्कि उसका सदुपयोग करते.  यह हमारी विडंबना है कि हमारा भारतीय समाज केवल सैद्धांतिक बातों के पीछे भागता फिरता है.  परंतु उसका 10 फ़ीसदी भी अपनाने की कोशिश कोई करता नहीं है.  व्यावहारिक जीवन में भारत का इतिहास बताता है कि एक संतगुरु तिरुवल्लुवर हुआ करते थे, जो हकीकत में अन्य की पूजा करते थे और अपने शिष्यों को भी इसको अपना परम देव समझने की शिक्षा देते थे.  दुख की बात यह है कि आज के भारतीय समाज में खासकर हिंदी भाषी क्षेत्रों में लोग गरीबी का रोना जरूर रोते हैं, परंतु कुशल गृह प्रबंधन का अभाव यहां के हरेक महिला एवं पुरुषों में देखी जाती है. वे अपनी गरीबी का रोना जरूर रोते हैं. अपनी आर्थिक स्थिति को भी समझते हैं फिर भी कोई ऐसा घर नहीं होगा जहां अन्न की बर्बादी प्रत्येक दिन,दोनों वक्त न होती हो. 
        यह हमारे समाज की रीति है कि समाज सेवा के नाम कोई भी आर्थिक सहयोग करने को तैयार नहीं है;जबकि  एक कंजूस से कंजूस व्यक्ति भी  प्रत्येक दिन भोजन या किसी अन्य माध्यमों से खुद को अर्थ हानि जरूर पहुंचाते हैं. प्रत्यक्ष रूप से उन्हें दिखता नहीं इसीलिए वे ऐसा करते हैं. महात्मा गांधी ने अन्न के महत्व बतलाते हुए कहा कि एकादशी का व्रत तभी पुण्यकारी है, जब उपवास के दरम्यान एक वक्त के बचे हुए भोजन को हम कहीं गरीबों एवं भूखे के नाम सुरक्षित रख देते हैं. इस प्रकार यदि 10 एकादशी व्रत करने वाले पुरुष व स्त्री अपने एक-एक वक्त का भोजन सुरक्षित रख लेते हैं तो उससे 10 भूखों का पेट भरा जा सकता है. धर्म की सार्थकता वही सिद्ध होती है. लेकिन लोग आडंबर में मग्न होकर एकादशी की निरर्थकता दिखालाही देते हैं. प्रत्येक एकादशी व्रत को वे साबरमती आश्रम में अपने शिष्यों को ऐसा करने केलिए प्रेरित करते थे. इससे अन्न का एक अच्छा संग्रह हो जाता था. इस प्रकार हिंदू धर्म का यह सिद्धांत कोई गलत नहीं है बशर्ते कि व्रत करने वाले लोग इसका महत्व जनसेवा जैसे पुण्य कार्य से समझे.
        इस्लाम में भी रमजान महीना लोगों की जन कल्याण की भावना से ही ओत-पोत है.  इसका भी वास्तविक उद्देश्य गरीबों और दुखियों की भलाई करना है तथा किसी भूखे के दर्द को समझना है. यह स्वाभाविक है कि भारत के अलावा भी विश्व के बहुत सारे ऐसे देश हैं, जहां भुखमरी की समस्या है. रमजान के रोजा का भी एक बहुत बड़ा संदेश यह है कि आप भूखे के दुख और दर्द को समझते हुए उसके लिए अपने ऊपर कुछ सितम उठाएँ  और उसके लिए एक कोष की स्थापना करके उन्हें भूखा रहित करें.  अतः दुनिया का प्रत्येक धर्म कोई न कोई अच्छा सिद्धांत ही देता है. परंतु दुख इस बात की है कि धर्म के ठेकेदार लोग चाहे वह किसी भी धर्म के हों; वे लोग धर्मांधता एवं रूढ़िवादिता की भावना आम जनों के दिलों और दिमाग में इतना भर देते हैं कि वे धर्म के वास्तविक स्वरूप का नही अवलोकन कर पाते हैं और नाही उसका पालन कर पाते हैं. 

      यदि अन्न के महत्व को समझना है तो महानगरों में रेलवे पड़ाव एवं बस पड़ाव पर जाकर देख सकते हैं. वहां वैसे भी कुछ लोग मिलेंगे जो आवश्यकता से अधिक भोजन या कोई खाद पदार्थ लेकर पेट भर जाने के बाद कुरे में फेंक देते हैं. वहीं एक ऐसा वर्ग भी मिलेगा जो उस फेंके हुए अन्न को लेकर अपना पेट भर लेते हैं.वहां भी अन्न को बर्बाद करने वाले वैसे लोगों को प्रेरणा नहीं मिल पाती है.यदि अन्न के महत्व समझना है तो सप्ताह में एक या दो दिन भूखे रहकर देखें तब पता चलेगा कि अन्न कितना महत्वपूर्ण है. ऐसे भी लोग किसी के जीवन और मृत्यु का अंदाज तब लगा लेते हैं जब वृद्धावस्था या लंबी बीमारी की अवस्था में वह भोजन करना छोड़ देता है.तब लोग मान लेते हैं कि यह ज्यादा दिन नहीं जी पाएगा.
         मैं अपने अनुभव के आधार पर यह कह सकता हूं कि भारत का प्रत्येक घर कम से कम एक आदमी का भोजन प्रत्येक दिन जरूर बर्बाद करता है. यदि वे लोग इस बर्बादी को दिल से समझ लेते तो देश को भुखमरी  बहुत हद तक बचाया जा सकता था.  साथ ही प्रत्येक परिवार को अतिरिक्त आर्थिक किल्लतों का सामना भी नहीं करना पड़ता. परंतु यह  संकल्प का विषय है .इसके लिए देश के प्रत्येक घर में हरेक नागरिकों को सजग रहना पड़ेगा. मेरा मानना है कि जो महिलाएं अपने आप को कुशल गृहिणी समझती हैं उनका एक लक्षण यह भी होना चाहिए कि वह अपने रसोई घरों में इतने ही सुपाच्य एवं स्वादिष्ट भोजन बनाए ताकि खाने के बाद जरा सा भी अतिरिक्त अन्न की बर्बादी न हो.

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