गिलोय का सब्जी खाने से ठीक हो सकता है मधुमेय

गिलोय के डंठल को काटते शिक्षक परमेश्वर पटवारी 
गिलोय के डंठल को काटते शिक्षक परमेश्वर पटवारी 
दोस्तों सुबह के शैर का मजा ही कुछ और है। प्रत्येक दिन की भांति आज भी मुझे एक नए प्रकार के वनस्पति को खोजने का अवसर प्राप्त हुआ। दरअसल इन चीजों की जानकारी मुझे अपने परिवेश से प्राप्त होता रहता  है।
जब मैं सुबह अपने पड़ोसी, शिक्षक परमेश्वर पटवारी जी के साथ सुबह की सैर पर निकला तो उनकी नजर अचानक  सड़क पर बिखरे  गिलोय की लत्तियों पर परा।  दरअसल यह एक लतरने वाला पौधा है। स्थानीय लोग इसके महत्व को नहीं समझते हैं। यहां तक कि ये लोग पशुओं को भी चारा के रूप में इसे नहीं खिलाते हैं।  प्रत्येक दिन की भांति सुबह के शैर में जब मैं निकलता हूँ तो दातून काटने के लिए अपने पास एक चाकू रख लेता हूं।  जब मैं दातुन काट रहा था उसी समय पटवारी जी की निगाहें गिलोय की लत्तियों पर पड़ा और उन्होंने उस गिलोय की लत्ती  को काटने के लिए मुझसे चाकू की माँग की। मैंने उन्हें चाकू तो दे दिया परंतु उत्सुकता बस मैंने उनसे पूछा कि आप इसे लेकर क्या करेंगे? उन्होंने मुझे कहा कि मैं इस गिलोय की लत्ती के मोटे डंठल को काट लूंगा और इसकी सब्जी बनाकर खाऊंगा। मेरी पत्नी बड़े चाव से इसे सब्जी के रूप में रसोई घर में इस्तेमाल करती है।यह सुनकर तो मुझे आश्चर्य हुआ लेकिन मैंने पूछा...इसकी सब्जी खाएंगे।  उन्होंने कहा जी जरूर आगे बताते हुए उन्होंने कहा कि इसकी सब्जी खिलाकर मैं अपनी पत्नी के मधुमेह की बीमारी को ठीक कर दिया। इसकी प्रेरणा मुझे रामदेव बाबा के एक वीडियो को देखकर प्राप्त हुआ जिसमें उन्होंने गिलोय के महत्व को समझाया था.रामदेव बाबा की बात  पर मुझे काफी यकीन हुआ और जब मैं अपने घर के पिछवाड़े में गया तो देख कर

गिलोय के डंठल को काटते शिक्षक परमेश्वर पटवारी 
खुशी के मारे झूम उठा क्योंकि घर  के चहारदीवारी  पर ढेर  सारे  गिलोय की लत्तियाँ बिखरे पड़े थे मेरी पत्नी पहले से ही मधुमेह पीड़िता  थी. मैं भी तनाव में था क्योंकि मैं जानता था की एलोपैथ में इस बीमारी का कोई स्थाई उपचार नहीं है, इसीलिए पत्नी से ज्यादा मैं तनाव में था क्योंकि डर यही था कि जब वह बीमार रहने लगेगी तो घर की जिम्मेवारी कौन संभालेगी फिर मेरी नौकरी कैसे होगी ? इत्यादि इत्यादि कई प्रकार की मानसिक  उलझने मेरे दिमाग में हावी होने लगा और मैंने सोचा कि मुझे बाबा रामदेव पर यकीन करना चाहिए क्योंकि आम जनों के बीच उनकी प्रगाढ़ आस्था है . तब से मेरे रसोई घर में नियमित रूप से एक वक्त की सब्जी गिलोय की तैयार होने लगी और देखते ही देखते कुछ ही महीनों में मेरी पत्नी का डायबिटीज छूमंतर हो गया. मैंने इसके लिए कोई अंग्रेजी दवा भी नहीं उपलब्ध कराया . अब वह बिल्कुल स्वस्थ है और आशा करते हैं  कि यदि इन वनस्पतियों का उपयोग अपने दैनिक जीवन में किया जाए तो कभी कोई रोगी  नहीं होगा.
       मेरे एक एनी मित्र गणेश पैटी जी ने भी कहा कि गिलोय १०१ प्रकार की बीमारियों के लिए रामबाण है.उनको यह जानकारी शहर के किसी अनुभवी विद्वत जनों से प्राप्त हुई. शहर के कई लोग उनसे ऊँची कीमतों पर गिलोय के पत्तियों एवं डंठलों की मांग करते हैं. परन्तु वे अन्य गतिविधियों में व्यस्त होने की वजह से उन्हें ऐसी सेवा उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं.
गिलोय के डंठल को काटते शिक्षक परमेश्वर पटवारी 
            प्राकृतिक वनस्पतियों में वाकई में इतनी ताकत है कि  अत्याधुनिक तमाम अंग्रेजी दवाइयां उसके सामने असफल है.  पर दुख इस बात है कि  सरकार इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं कर रही है.  वह क्यों हर मामले में यहां की जनता को दूसरे देशों पर निर्भर बना रही है यह समझ के बाहर की चीज है.प्राकृतिक वनस्पतियों में इतनी ताकत जरूर है कि यह असाध्य  से असाध्य बीमारी को कुछ दिन व महीनों में ही जड़ से मिटा सकता है.  अब वक्त आ गया है कि सरकार इस दिशा में पहल करें एवं ग्रामीण संस्कृति एवं प्राकृतिक वन संपदाओं का उपयोग करके यहां की जनता को स्वस्थ और समृद्ध बनाएं. इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाना पड़ेगा.  केवल राजनीतिक बयानबाजी से काम नहीं चलेगा . दुनिया के अनेक देशों को भारत ने  चिकित्सा शास्त्र सिखाया और आज इसे दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़े, यह तो हमारे देश की विडंबना है.  मैं अपने पहले के आलेख में भी यह स्पष्ट कर चुका हूं कि यदि सरकार कृषि एवं पशुपालन को बढ़ावा दे तो भारत फिर से सोने की चिड़िया बन जाएगा क्योंकि यहां का वातावरण ही इसी तरह का है.  यदि पशुओं के मल-मूत्र के प्रोसेसिंग की व्यवस्था सरकारी  स्तर पर कर दिया जाए तो निश्चित रूप से देश को रासायनिक खादों पर से निर्भरता खत्म हो जाएगी साथ ही जमीन के अंदर नमी धारण करने की क्षमता भी बढ़ेगी. इसका सबसे महत्वपूर्ण परिणाम  यह होगा कि यहां के किसानों की अर्थव्यवस्था एवं जीवन स्तर निम्नतम से उच्चतम हो जाएंगे और किसान गरीब नहीं माने जाएंगे. मेरा मानना है कि जिस तरह से भारतीय सेना सीमा पर देश की रक्षा करते हैं उससे कम यहां के किसान नहीं हैं .ये  लोग भी देशभक्त हैं. क्योंकि भूखे रहकर जिन फसलों का उत्पादन ये लोग करते हैं उससे देश की सभी अमीर व गरीब जनता अपना पेट पालती है. अतः इन्हें प्रथम श्रेणी के देशभक्त कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है मैं एक बार फिर से देश के प्रधानमंत्री से आग्रह करना चाहूंगा की ग्रामीण क्षेत्रों में प्राकृतिक वनसंपदाओं को संरक्षण देकर ग्रामीण एवं शहरी जन-जीवन को खुशहाल बनाएँ.


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